टूटा हुआ कांच हूँ मैं ये टुकड़े बिखर ही गए जो पैर रख दे मुझ ही पे वह कट के ही बहते गए आसूं भी सूख गए हैं ये चेहरा पिघल ही गया तेज़ाब फेंका है मुझ पे छपाकों से तू जल गया और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को तेज़ाब फेंक गया मुझ पे बेनकाब कर गया मुझको आईना ना देखा गया मुझसे आयी ना ज़रा भी दया तुझको तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब टूटा हुआ कांच हूँ मैं ये टुकड़े बिखर ही गए जो पैर रख दे मुझ ही पे वह कट के ही बहते गए आसूं भी सूख गए हैं ये चेहरा पिघल ही गया तेज़ाब फेंका है मुझ पे छपाकों से तू जल गया और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को शायद ही नींद आती है ये जलन तड़पाती है मेरा मन है सलाखों में मेरा तन हुआ राकों में तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब