नज़रों में क्यूँ डूब जाती तुम पास आते तो क्यूँ मुस्कुराती सुनके नाम तुम्हारा क्यूँ कुछ ना बोल पाती पहले ना कभी हुआ है ऐसा कोई दूसरा लगा अपना हो जैसा कोशिशें करके भी हारी क्या मैं हो जाऊँ तुम्हारी? क्या मैं हो जाऊँ तुम्हारी? बस करो यह खींचातानी बयान करने में मैं घबराती फोन तुम्हारा जब उठाती क्यूँ यह धड़कने यूँ बढ़ जाती पहले ना कभी हुआ है ऐसा कोई दूसरा लगा अपना हो जैसा कोशिशें करके भी हारी क्या मैं हो जाऊँ तुम्हारी? बिस्तर पे करवटें लेके हंसती खुली आँखों से सपने देखती दिन कब रात में यूँ ढल जाती कोई बता दे क्या, इसे ही प्यार कहते हैं? पहले ना कभी हुआ है ऐसा कोई दूसरा लगा अपना हो जैसा कोशिशें करके भी हारी क्या मैं हो जाऊँ तुम्हारी? क्या मैं हो जाऊँ तुम्हारी? क्या मैं हो जाऊँ तुम्हारी?