लगी है प्रीत मम् तुमसे तो दर पे तेरे आना क्यों? हरा मम् चित् ही तुमने तो अब तुमको मनाना क्यों? सुना है आप मिलते हैं जिनालय में, शिवालय में सुना है आप मिलते हैं जिनालय में, शिवालय में मेरे चित् में तुम्ही अंकित मिलोगे तुम, निराले में तुम्ही वक्ता, तुम्ही श्रोता तो अपना दुख, सुनाना क्यों? कोई मिलता यहाँ हँस के कोई रो-रो के मिलता है किसी का मन मचलता है किसी का चित् खिलता है नहीं है अब वियोगी शर्त तो पर में मन लगाना क्यों? हरा मम् चित् ही तुमने तो अब तुमको मनाना क्यों? नहीं है मित्र इस जग में नहीं शत्रु भी दिखता है हमारा कर्म ही नित्-नित् हमारा भाग्य लिखता है तू ही है भाग्य-विधि लेखक तो लिखकर फिर मिटाना क्यों? हरा मम् चित् ही तुमने तो अब तुमको जताना क्यों? तुम्ही हो ईश प्रभु सेवक तुम्ही गुरु-शिष्य हो सच्चे तुम्हीं हो पूर्ण बरु अध भी तुम्हीं शिव बंधु हो अच्छे ए कहें वशुनंद नि्त तुमसे तो जल में जल मिलाना क्यों? लगी है प्रीत मम् तुमसे तो दर पे तेरे आना क्यों? (आना क्यों?) (आना क्यों?)