जागती है या ख़्वाब सी हक़ीक़त भी है और है राज़ भी मग़रूर है, ये मजबूरी भी है बेहया और है लाज भी चेहरे पे सादगी, रूह से आफ़ती राख में आग सी, राग-बैराग सी किसकी है? किसकी थी मायानगरी? ♪ मुंबई नगरीचा वाजे, वाजे हो दाही दिशी डंका कधी रे डोंगर स्वप्नांचा, कधी ही रक्ताची लंका मुंबई नगरीचा वाजे, वाजे हो दाही दिशी डंका ये फ़र्शों से उठाती है ये अर्शों तक पहुँचाती है कभी तख़्तों पे बिठाती है कभी ख़ाक में मिलाती है चेहरे पे सादगी, रूह से आफ़ती राख में आग सी, राग-बैराग सी किसकी है? किसकी थी मायानगरी?