ख़ाली पड़े पन्नों में दिल के क्यूँ महके हैं नए अरमाँ? राहें वही पिछली पुरानी सी पर बदली है हर एक शाम ये नज़ारे क्यूँ बनके इशारे? ले रहे फिर बस तेरा नाम अब हर दिन तो हुआ थोड़ा आसाँ बदला मैं ऐसे, ख़ुद हूँ मैं हैराँ ख़ुद हूँ मैं हैराँ थोड़ा सा तेरा, थोड़ा सा सपना वो, अपना वो दिल में सँभल के धड़कता था रहता जो सड़कों में, गाड़ी के शोर सा बहने लगा कोई भी ग़म जो दिल से गुज़रते हैं आते-जाते तुझमें कहीं वो सँभलते तो दे दिलासे दिल में कौन है, अब तू इनको बता अब हर दिन तो हुआ थोड़ा आसाँ सँभला मैं ऐसे, ख़ुद हूँ मैं हैराँ ख़ुद हूँ मैं हैराँ ♪ ख़ाली पड़े कमरों में घर के क्यूँ खिल रहे नए पैग़ाम? जो जी रहे हैं हम-तुम मिल के लगता है जीना इसका ही नाम थोड़ा सा तेरा, थोड़ा सा सपना वो, अपना वो दिल में सँभल के धड़कता था रहता जो सड़कों में, गाड़ी के शोर सा बहने लगा कोई भी ग़म जो दिल से गुज़रते हैं आते-जाते तुझमें कहीं वो सँभलते तो दे दिलासे दिल में कौन है, अब तू इनको बता ख़ाली पड़े पन्नों में दिल के महके से नए अरमाँ राहें वही पुरानी सी बदली है ये शाम