Kishore Kumar Hits

Harish Bhimani - Shaneschar Stotram şarkı sözleri

Sanatçı: Harish Bhimani

albüm: Saturn the Ruler of Destinies


(ॐ)
(ॐ)
(ॐ)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
कोणोऽन्तको रौद्रायमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरीः
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीड़ाम् dam तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
सुराऽसुराः किं पुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्व विद्याधरपन्नगाश्च
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
नरानरेन्द्राः पश्वो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृंगाः
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यश्यः ग्रामणि देशाः पुरपद्रुनाश्च
पीड्यन्ति ते अपि विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
अन्य प्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्
गृहाद्गतो यो न पुन: प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
प्रयागकूले यमुना तटे च सरस्वती पुण्य जले गुहायाम्
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
तिलैर्यवैर्मार्षगुडान्नदानैलोर्हेन नीलाम्बरदानतो वा
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
स्रष्टा स्वयं भूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते ममेशः
एकस्त्रिधा ऋग्यजुः साममूर्तिः तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
(...तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
(धा-धिन-ता, त-ग-दि-ग-न)
शन्यष्टकं यः पठते प्रभाते नित्यं सुपुत्रै पशुबान्धवैश्च
करोति राज्यं भुवि भाग्य सौख्यंक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं यथाते
...प्राप्नोति निर्वाणपदं यथाते
...प्राप्नोति निर्वाणपदं यथाते
(ॐ)
(ॐ)
(ॐ)

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