फिरता मुसाफ़िर बन के दिल का क्या क़ुसूर चढ़ा है कसौली की जो हवा का फ़ितूर नूर... इन आसमानों का नूर ख़ामोश राहों का नूर जैसे तेरी आँखों का नूर नूर... इन सर्द शामों का नूर ऊँचे पहाड़ों का नूर जैसे तेरी आँखों का नूर बादल देखूँ तारा देखूँ बन के मैं बंजारा देखूँ मुड़-मुड़ के दोबारा देखूँ दिल ना भरे सारी दुनिया मोड़ लाऊँ सारे नाते तोड़ पाऊँ यहाँ खुद को छोड़ जाऊँ दिल है कहे फिरता मुसाफ़िर बन के दिल का क्या क़ुसूर चढ़ा है कसौली की जो हवा का फ़ितूर नूर... इन आसमानों का नूर ख़ामोश राहों का नूर जैसे तेरी आँखों का नूर नूर... इन सर्द शामों का नूर ऊँचे पहाड़ों का नूर जैसे तेरी आँखों का नूर