तुम ही से ख़ाबों में मिल के आया छुपके से नींदें तुम को दे आया कर के तुम से दिल की बातें रोज़ाना सोती हैं रातें ज़रा सी ख़ुशी आती-आती रख आया हूँ सिरहाने ना ही जानूँ मैं, जाने तू कितना चाहूँ ना जाने तू ना ही जानूँ मैं, जाने तू कितना चाहूँ ना जाने क्यूँ ना तू जाने ये, ना मैं जानूँ ये कहता नहीं मैं कुछ भी ना जाने क्यूँ (कुछ भी ना जाने क्यूँ) रहता हूँ पर तुझ ही में ना जाने क्यूँ (क्यूँ) (क्यूँ) (क्यूँ) कभी जब तुझे मिलना चाहे होगा ये भी; तुझे मिल ना पाए पलकें झुकें तो बस दिख जाना तू तेरा नहीं होना दिल को दुखाए तेरे बिना नहीं छाँव सुहाए बहती हवा सा छू जाना तू ना तू जाने ये, ना मैं जानूँ ये कहता नहीं मैं कुछ भी ना जाने तू रहता हूँ पर... (जाने क्यूँ)