"Manoj, कुछ नया लिखा? सुनाओ" Jagjit जी ने अपनी कड़कती हुई आवाज़ में कहा और मैं सोच में पड़ गया कि ग़ज़ल के इस बादशाह को कौन सी ग़ज़ल पेश करूँ ख़ैर, मन में जो पहली ग़ज़ल आई, पढ़ दी Jagjit जी ध्यान से सुनते रहे, ग़ज़ल ख़त्म हुई और उन्होंने अपनी diary मेरी तरफ़ बढ़ा दी इस पर लिख दो, ये ग़ज़ल मैं record करूँगा Recording से पहले ही वो हमेशा के लिए ख़ामोश हो गए जो Jagjit Singh कभी गा नहीं पाए वो ग़ज़ल उनके चाहने वालों के हवाले आप के हवाले ♪ मुझे किसी से प्यार नहीं है, आँखें मगर सवाली हैं मुझे किसी से प्यार नहीं है, आँखें मगर सवाली हैं कुछ दिन से लगता है जैसे... कुछ दिन से लगता है जैसे शामें ख़ाली-ख़ाली हैं मुझे किसी से प्यार नहीं है, आँखें मगर सवाली हैं ♪ गिन के बता सकता हूँ, कितने पत्थर पाँव में चुभते हैं गिन के बता सकता हूँ, कितने पत्थर पाँव में चुभते हैं उसके शहर की सारी गलियाँ... उसके शहर की सारी गलियाँ मेरी देखी-भाली हैं मुझे किसी से प्यार नहीं है, आँखें मगर सवाली हैं ♪ अश्कों का सैलाब बदन की दीवारें भी तोड़ गया अश्कों का सैलाब बदन की दीवारें भी तोड़ गया बड़े जतन से तेरी यादें... बड़े जतन से तेरी यादें मैंने आज सँभाली हैं मुझे किसी से प्यार नहीं है, आँखें मगर सवाली हैं कुछ दिन से लगता है जैसे शामें ख़ाली-ख़ाली हैं