अब की ये सुबह इस क़दर हुई शाम की हमें कुछ ख़बर नहीं शैख़ का बयाँ इस क़दर हसीं इल्म की ज़ुबाँ बे-असर हुई कोई ऐसा जहाँ जहाँ ना रात हो बिन बोले बयाँ, बयाँ वो बात हो 'गर मेरी सुनो, वो लाजवाब हो मेरा जो बक़ा, जो मेरा ख़्वाब हो ♪ तब की ये सुबह इस क़दर हुई रोज़ की हमें कुछ फ़िकर नहीं शैख़ का बयाँ इस क़दर हसीं दीद की ज़ुबाँ अब असर हुई कोई ऐसा जहाँ जहाँ ना रात हो बिन बोले बयाँ, बयाँ वो बात हो 'गर मेरी सुनो, वो लाजवाब हो मेरा जो बक़ा, वो मेरा ख़्वाब हो ♪ हो शादमाँ हर मुक़ाम शाहीन रूह और ज़ुबाँ हो कारगर और वसी शोख़ी भरा, मस्ती भरा