शोर न करो यहाँ मुफ़लिसा दिल बेज़ार है आज तो आलमगिर नफ़्ज क्यूँ फिर बीमार है? खुशग़वार सा ये है नाज़ क्यूँ? खोल दे कहीं पे ये राज़ तू शामजान शामजान सोचना दिल कभी शामन ज़ोर है सोचना दिल बेज़ार क्यूँ? आज तो मुरीद फिर नाराज़ है होश बेख़बर पर बेबाक है सोहबत जहां फनकार यूँ मुझको यूँ मलाल तो फिर हुआ क्यूँ? शोर न कहीं अब तो ज़ोर है मुझको क्या हुआ? गोर अंदोज़ है शामजान शामजान शामजान शामजान सोचना नहीं कभी शामन ज़ोर है सोचना दिल बेज़ार क्यूँ? हो गया फिर बीमार क्यूँ? शामजान, हो