क्यूँ ढूँढे है तू ख़ुद में ग़म, ये बता जब जादू यहाँ चलती फ़िज़ाओं में है क्यूँ ढूँढे है तू रात में दिन का पता जब मस्ती यहाँ चाँदनी राहों में है क्यूँ देखे है तू आँख-भर एक सपना सपने तो यहाँ बुनते हज़ारों में हैं क्यूँ ढूँढे है तू भीड़ में एक अपना अपने तो यहाँ सब अनजाने भी हैं क्यूँ ढूँढे है तू रात में दिन का पता जब मस्ती यहाँ चाँदनी राहों में हैं ♪ और कभी-कभी जो अश्क़ों से मुलाक़ात होती है वो समझाने को अनजानी एक बात होती है अरमानों की सड़क पे ना हैराँ हो, प्यारे जहाँ तू है वहाँ भी तो बरसात होती है और होती है जोबन की फ़िर से सुबह वो सुबह भी चमकती किताब होती है जा ले-ले तू भी मनमर्ज़ी का मज़ा क्या रखा तेरी चार दीवारों में है? क्यूँ ढूँढे है तू रात में दिन का पता जब मस्ती यहाँ चाँदनी राहों में है