मैं जो हूँ, मैं वो हूँ तेरे बग़ैर कुछ नही हूँ ग़ुमशुदा हूँ, खो गया हूँ सब मिट गया, जो भी था लिखा छूना तुझे चाहूँ मैं अगर (मैं अगर) छू ना सकूँ तू जो गई यूँ छोड़कर हैं खींची जो लक़ीरें दोनों में बार-बार गर्दिश में है खड़ा (है खड़ा) इंतज़ार है यही मेरी ख़्वाहिशें आऊँ तेरे वहाँ मिलती ख़ुशी मगर होती जो तू यहाँ कैसे सहूँ? दर्द जो धरूँ पल-पल उन्हें किस तरह से पियूँ? छूना तुझे चाहूँ मैं अगर (मैं अगर) छू ना सकूँ छूटा जो साँसों का सफ़र हैं खींची जो लक़ीरें दोनों में बार-बार गर्दिश में है खड़ा (है खड़ा) इंतज़ार हैं यही मेरी ख़्वाहिशें आऊँ तेरे वहाँ मिलती ख़ुशी मगर होती जो तू यहाँ (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) तू यहाँ, होती जो तू यहाँ है यही मेरी ख़्वाहिशें आऊँ तेरे वहाँ मिलती ख़ुशी मगर होती जो तू यहाँ (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ) (तू यहाँ, होती जो तू यहाँ)