आसमां... कितना सारा था आसमां जिसपे हमने था सब धरा, पैर बादल पे था आया रास्ता... हम थे पानी का रास्ता ना किसी से भी वास्ता, धूप थे, हम ही थे साया धुंआ ऐसा उठा तारों से टूट के गिरा कुआं ऐसा बना रस्सी से छूट के गिरा रास्ता... पानी का था जो रास्ता उड़ गया बन के भाप सा मेरा धुंधला हुआ साया आसमां... इतना सारा था आसमां मिट गया कच्चे ख्वाब सा रात ने मेरा दिल खाया धुंआ ऐसा उठा तारों से टूट के गिरा कुआं ऐसा बना रस्सी से छूट के गिरा जल-जल के मुड़ना और डर-डर के उड़ना हुआ... क्या हुआ? बच-बच के चलना कहना कोई सच ना हुआ... क्या हुआ? हुआ... नाराज़ सा शाखों से छूट के गिरा जुआ... हर सांस का आंखों में कील सा गड़ा धुंआ ऐसा उठा तारों से टूट के गिरा कुआं ऐसा बना रस्सी से छूट के गिरा