कभी मेरे घर की दहलीज़ पे जो तुम कदम रखोगी तो सीलन लगी कच्ची दीवारों पे खुद को देख के चौकना नहीं हाँ, चौकना नहीं तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं ♪ कोने में टूटा सा फ़ूलदान, बिस्तर पे बिखरी किताबें चादर की वो तीखी सी सिलवटें, यादों की चुभती दरारें सोचा था कोई सँवार देगा, ग़म में मुझे बहार देगा तुम्हारे जाने के बाद कोई भी दस्तक यहाँ हुई ही नहीं तुम्हारे जाने के बाद कोई भी दस्तक यहाँ हुई ही नहीं ♪ सुना है वो गालों पे भँवर लिए चलती है नंगे पाँव आँखों में सहर लिए सूरज बुझे तो यहाँ भी आना फ़ासलों में तुम खो ना जाना कभी तो भूले से तुम मेरे इस घर को महकाना कभी तो भूले से तुम मेरे इस घर को महकाना