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Talat Aziz - Dil Hi To Hai şarkı sözleri

Sanatçı: Talat Aziz

albüm: Ghalib


हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि Ghalib का है अदाज़-ए-बयाँ और
Mirza Ghalib की शायरी इंसानी ज़िंदगी की तरह अनगिनत चेहरों का collage है
वो कभी आशिक़ नज़र आते हैं, कभी मोहब्बत का मज़ाक उड़ाते हैं
कभी ख़ुदा के आगे सर झुकाते हैं
कभी जन्नत और दोज़ख़ के तसव्वुर को दिल के बहलाने का फ़रेब ठहराते हैं
कभी बड़े से बड़े ग़म से टकरा जाते हैं, कभी मामूली से दुख में टूट कर आँसू बहाते हैं
ये सारे चेहरे मिलकर वो शख़्सियत बनाते हैं
जो अदब की तारीफ़ में Mirza Asadullah Khan Ghalib के नाम से जाने जाते हैं

दिल ही तो है, ना संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ?
दिल ही तो है, ना संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ?
रोएँगे हम हज़ार बार...
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यूँ?
दिल ही तो है, ना संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ?

दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, कोई हमें उठाए क्यूँ?
रोएँगे हम हज़ार बार...
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यूँ?
दिल ही तो है, ना संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ?

क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँ?
रोएँगे हम हज़ार बार...
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यूँ?
दिल ही तो है, ना संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ?

ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं?
ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं?
ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं?
ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं?
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए, "हाए-हाए" क्यूँ?
रोएँगे हम हज़ार बार...
रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यूँ?
दिल ही तो है, ना संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ?
दर्द से भर ना आए क्यूँ?
दर्द से भर ना आए क्यूँ?

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