Kishore Kumar Hits

Nitin Mukesh - Jiski Manzil Hi Ho Maikhana şarkı sözleri

Sanatçı: Nitin Mukesh

albüm: Jaam-E-Saqi


"बोझ रस्मों का ले," प्यास कहती चले
"बोझ रस्मों का ले," प्यास कहती चले
वक़्ती क़समों तले कब तक तौबा पले
लाख वादे हों, नज़रों का हो पहरा, हो पहरा, हो पहरा
जिसकी मंज़िल ही हो...

जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना
ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना

कोई महफ़िल ना थी, कोई दौर ना था
गर्ज़ पीने से भी कोई तौर ना था
कोई महफ़िल ना थी, कोई दौर ना था
गर्ज़ पीने से भी कोई तौर ना था
गर्ज़ पीने से भी कोई तौर ना था
काम मस्ती से था, थोक से पी गया
हैरत से क्यूँ तकता है पैमाना
जिसकी मंज़िल ही हो...
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना

वाइज़ की नसीहत पे चलना मुहाल
ज़ाहिद तेरी जन्नत तू ही सँभाल
वाइज़ की नसीहत पे चलना मुहाल
ज़ाहिद तेरी जन्नत तू ही सँभाल
जिस आग से दुनिया डरती फिरे
खुश हो के निपटता है परवाना
जिसकी मंज़िल ही हो...
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना

कैद मंदिर में कर दिल से बहार किया
दिल से बहार किया
ज़िक्र औरों से कर रिश्ता ज़ाहिर किया
रिश्ता ज़ाहिर किया
जिसकी मस्ती पे मरता है खुद ही ख़ुदा
जिसकी मस्ती पे मरता है खुद ही ख़ुदा
उसको कहती ये दुनिया है दीवाना
जिसकी मंज़िल ही हो...
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना
ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
जिसकी मंज़िल ही हो मयख़ाना
ख़ाक रोकेगा, ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना
ख़ाक रोकेगा उसको ज़माना

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