राही चलने लगा, राहें मुड़ने लगी ना ख़बर ये भी, कल हो कि नहीं राही चलने लगा, राहें मुड़ने लगी ना ख़बर ये भी, कल हो कि नहीं उल्झी सी डगर, ये क़दम बे-सबर चल रहें हैं बस यूँही बे-वजह राही चलने लगा, राहें मुड़ने लगी मंज़िल का कहीं कोई नाम नहीं उल्झी सी डगर, ये क़दम बे-सबर चल रहें हैं बस यूँही बे-वजह गहरी सी हैं ये तन्हाइयाँ हो, पूछे हैं मुझे, "जाना है कहाँ?" किसको ये पता किस रोज़ खो गया था जो था मेरा? ऊँची नीची डगर, है सफ़र ही सफ़र चल रहें हैं बस यूँही बे-वजह राही चलने लगा, राहें मुड़ने लगी फ़र्ज़ी ये सफ़र पूरा होता नहीं