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Salim–Sulaiman - Dhaage şarkı sözleri

Sanatçı: Salim–Sulaiman

albüm: Dhaage


दिल मज़ारों पे...
दिल मज़ारों पे धागे बाँधता फिरता है
दिल मज़ारों पे धागे बाँधता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
दिल मज़ारों पे धागे बाँधता फिरता है
दिल मज़ारों पे धागे बाँधता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
हक़ है, महबूब-ए-इलाही, हक़ है
हक़ है, महबूब-ए-इलाही, हक़ है
हाँ, तेरे दर पे आए, सरकार-ए-निज़ामुद्दीन औलिया
हक़ है, महबूब-ए-इलाही, हक़ है

इश्क़ की मन्नत है या फिर कोई जन्नत है?
ज़िक्र, महबूब-ए-इलाही, ये दिल कर रहा
ख़्वाहिशों की चादर में इक ज़ियारत पड़ी है
"जाने कब होंगी पूरी", यही कह रहा
हक़ में गवाही देगा कब वो सितारा?
हाँ, हक़ में गवाही देगा कब वो सितारा?
कब तक रहेंगी ऐसे लकीरें अवारा?
सर झुका कर सज्दे में...
हाय, सर झुका कर सज्दे में आयतें पढ़ता है
सर झुका कर सज्दे में आयतें पढ़ता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
दिल मज़ारों पे धागे बाँधता फिरता है
दिल मज़ारों पे धागे बाँधता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है
ख़ुदा ही जाने, उससे क्या माँगता फिरता है

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