टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता और रेशा-रेशा रात हुई टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता और रेशा-रेशा रात हुई कैसी खुशी है इस दिल में जो ग़म से लिपटी जाती है? पलकों के नीचे एक बदली अश्कों में सिमटी जाती है, अश्कों में सिमटी जाती है टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता और रेशा-रेशा रात हुई टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता और रेशा-रेशा रात हुई ♪ ख़ुश दिखना भी मजबूरी है, दिल में एक चीख अधूरी है ख़ामोशी कहती मेरी ही, "अब मुझसे कितनी दूरी है?" रोना भी रोका है अपना, हँसना भी बहुत ज़रूरी है आधी-आधी रूह वंडी पर दिखने में लगता पूरी है, दिखने में लगता पूरी है टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता और रेशा-रेशा रात हुई टुकड़ा-टुकड़ा-, रेशा-रेशा...