शिरकत हमारी ख़तम आरज़ू पे तेरी थी जो मेरी भी हो गई बदलेंगे हम और ये दिल जो तेरा था यादें तेरी फ़िर भी होंगी कहीं अब हैं जुदा क़ुर्बत नहीं सोहबत के बिन तेरे क्या है सही? गुज़रे हैं बस बिन चाह के पल जो तेरे थे हुए अब नहीं है इस-क़दर अर्ज़ यहाँ बेरंग ज़मीं, बेरंग फ़िज़ा ख़ुश है ना तू, हम भी सही फ़र्क है वो था जो नहीं फ़िर भी ना उभरे हैं तुमसे पूरे अभी, ई मुश्किल है (आदत में भी तुम) है (तब तुम भी ना हम) ♪ ठहरी फ़िज़ा ये ढूँढे तुझे है तेरी हँसी को ये दिल मेरा हाथ वो छूटे, एहसास वहीं है अभी भी लगे है तू है यहाँ किससे कहे दर्द मेरा? मर्ज़ तो तू ही थी, तू है कहाँ? कैसे रिहा तुम हो गई? कह तो दिया था पर थे हम नहीं क़ुल्फ़त में अब मेरा जहाँ दिल ये कहे, "तू है कहाँ?" चाहूँ, हाँ, मैं मुड़ के कभी देखे मुझे तू ना कभी ख़ुश ही रहे तू और शायद हम भी कभी, ई मुश्किल है (आदत में भी तुम) है (तब तुम भी ना हम)