क्या क़ायनात की थी साजिशें ये ठेहरी थी क्यूँ रास्तों में मैं भी होके बेसबर सा संग ये चल पड़ा तेरी उस हँसी को नाप लूँ मैं 'गर सितारों में भी कम लगे है लगता जैसे हो ना ये बयाँ मैं डोर में उलझा हूँ जो बस तेरी तरफ़ ये खींचे मुझको आज भी क्यूँ लापता मंज़िल अब है बस यहीं तू था कुछ पल पहले अब नहीं टूटा है घर वो मेरा दिल ने बनाया था जो यादों को घेरे खड़ा तेरी है बस जानता हूँ मैं ही हूँ वो जिसकी वजह से अब ना खिड़कियों या चौखटों में तेरी है झलक ♪ मैं खुद को हार के था तुझपे फ़नाह सा क्यूँ ना दिख रहा था मुझको तुझको मैं दिखा ना मैं जा चढ़ा था ख्वाहिशों की खुद से शिखर में पर कह ना था पाया तुझसे फ़िक्र में हाँ हो गया था मेरा जो डर कभी तेरी नज़र में ना अब मैं हूँ कहीं जो थी मंज़िल के आगे दूरियाँ अब ना मंज़िल है वो ही मैं भी ना टूटा है घर वो मेरा दिल ने बनाया था जो यादों को घेरे खड़ा तेरी है बस जानता हूँ मैं ही हूँ वो जिसकी वजह से अब ना खिड़कियों या चौखटों में तेरी है झलक