मौसम की आहट से जागी सी चाहत को सुनकर मैं धुन सी खिली पलकों से बुन-बुनकर, सपनों से चुन-चुनकर सीपें थी मुझको मिली महकी फ़िज़ा से लेकर अदा गगन से थी मैं जा मिली सीपों में लहरें थी, बादल भी गहरे थे ठहरे थे हम भी वहीं ऐ, तरंगी किनारा, क्या पूछे है तू? मेरे कदमों की राहें अकेली नहीं यूँ भिगो के कहीं और चल दे जो तू मेरी आहें तो सूझे पहेली नहीं आ, डुबा दे मुझे इश्क़ के जाल में भीग जाऊँ रूमानी तेरे प्यार में नैनों में मेरे कुछ सपनें सुनहरे हैं अरमानों की है लड़ी पलकों के खुलते ही ओझल हो जाती है ख़्वाबों की ये फुलझड़ी लौटा दे मौसम की आहट, वो चाहत मैं अब भी वहीं हूँ खड़ी सपनों की नगरी को, ख़्वाबों की डगरी को सच करने पे हूँ अड़ी