दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी वारी-वारी, जन्म-मरणाते वारी हारी पडलो आता संकट निवारी जय देवी, जय देवी... (जय देवी, जय देवी महिषासुरमर्दिनी) (सुरवर ईश्वर वरदे तारक संजीवनी) (जय देवी, जय देवी...) त्रिभुवन भुवनी पहाता तुज ऐसी नाही चारी श्रमले, परंतु न बोलवे काही साही विवाद करीता पडीले प्रवाही ते तु भक्तालागी पावसी लवलाही जय देवी, जय देवी... (जय देवी, जय देवी महिषासुरमर्दिनी) (सुरवर ईश्वर वरदे तारक संजीवनी) (जय देवी, जय देवी...) प्रसन्नवदने प्रसन्न होसी निजदासा क्लेशांपासुनी सोडवी, तोडी भवपाशा अंबे तुजवाचून कोण पुरवील आशा? नरहरी तल्लीन झाला पदपंकजलेशा जय देवी, जय देवी... (जय देवी, जय देवी महिषासुरमर्दिनी) (सुरवर ईश्वर वरदे तारक संजीवनी) (जय देवी, जय देवी...)