आने से उसके फ़िज़ा गाती है बेफ़िक्र राहों में यूँ चलती है ज़माने, बहाने, पुकारें सभी खुद ही को खुद ही ये संभाले अभी हवाओं से यूँ बात करती रहे जो दबे फ़ासलों को मिटाती रहे खुदगर्ज़ी ना उसने सीखी कहीं है कहानी यही, बस कहानी यही ♪ इरादे जो सारे बिखरने ना दे इनायत की अब ये रिहाई बुने कहीं ना मिलेगी ऐसी कोई उलझन ये सारे सुलझाती रही हवाओं से यूँ बात करती रहे जो दबे फ़ासलो को मिटाती रहे खुदगर्ज़ी ना उसने सीखी कहीं है कहानी यही, बस कहानी यही ♪ हवाओं से यूँ बात करती रहे जो दबे फ़ासलो को मिटाती रहे खुदगर्ज़ी ना उसने सीखी कहीं है कहानी यही, बस कहानी यही