मुझे यूँ ही कर के ख्वाबों से जुदा जाने कहाँ छुप के बैठा है खुदा जानूँ ना मैं कब हुआ ख़ुद से गुमशुदा कैसे जियूँ रूह भी मुझसे है जुदा क्यूँ मेरी राहें मुझसे पूछे घर कहाँ है क्यूँ मुझसे आ के दस्तक पूछे दर कहाँ है राहें ऐसी जिनकी मंज़िल ही नहीं दूँढो मुझे अब मैं रहता हूँ वहीं दिल है कहीं और धड़कन है कहीं साँसें हैं मगर क्यूँ ज़िन्दा मैं नहीं रेत बनी हाथों से यूँ बह गयी तकदीर मेरी बिखरी हर जगह रेत बनी हाथों से यूँ बह गयी तकदीर मेरी बिखरी हर जगह कैसे लिखूँ फिर से नयी दास्ताँ ग़म की सियाही दिखती हैं कहाँ ऐसे भी हुई थी मुझसे क्या ख़ता तूने जो मुझे दी जीने की सज़ा